पुलिस की 112 योजना – जनता की सुरक्षा या 1200 करोड़ का घोटाला ?

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  • August 26, 2025, 12:00 pm

MP पुलिस की 112 योजना – जनता की सुरक्षा या 1200 करोड़ का घोटाला ?

मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में “112” योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य था कि किसी भी आपात स्थिति — चाहे वह चोरी हो, सड़क हादसा हो, महिला सुरक्षा का मामला हो या कोई अन्य घटना — केवल 112 नंबर डायल करते ही पुलिस तुरंत मौके पर पहुँच जाए। सुनने में यह योजना बेहद शानदार लगती है, लेकिन इसके साथ एक बड़ा सवाल भी जुड़ा है — इस योजना पर कुल 1200 करोड़ रुपए खर्च हुए। क्या वाकई जनता की सुरक्षा के लिए इतना बड़ा खर्च ज़रूरी था, या इसमें कोई घोटाला छुपा हुआ है?


गाड़ियों का विवरण

इस योजना के तहत लगभग 1200 गाड़ियाँ खरीदी गईं। इनमें से ज्यादातर महिंद्रा स्कॉर्पियो और बोलेरो हैं।

  • हर गाड़ी में GPS सिस्टम

  • हाईटेक वायरलेस सेट

  • ट्रैकिंग डिवाइस

  • और त्वरित संचार के लिए आधुनिक तकनीक

लगाई गई है। सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में इन सुविधाओं की लागत इतनी अधिक है जितना बताया जा रहा है?


खर्च का ब्योरा

सरकारी आँकड़ों के अनुसार, इस पूरी योजना पर लगभग 1200 करोड़ रुपए खर्च किए गए।

  • यदि इस खर्च को 1200 गाड़ियों में बाँटा जाए, तो प्रति गाड़ी लागत लगभग 1 करोड़ रुपए बैठती है।

  • जबकि बाज़ार में वही बोलेरो/स्कॉर्पियो गाड़ियाँ 10–15 लाख रुपए में उपलब्ध हैं।

  • फीचर्स और तकनीकी अपग्रेड जोड़कर भी कीमत अधिकतम 25–30 लाख रुपए तक होनी चाहिए।

तो सवाल यह उठता है कि बाक़ी का पैसा कहाँ गया? क्या यह जनता के टैक्स का दुरुपयोग है?


जनता की राय

आम नागरिकों के मन में अब कई सवाल हैं:

  • क्या इतनी बड़ी रकम खर्च करने से वाकई सुरक्षा बेहतर होगी?

  • क्या यही पैसा अस्पतालों, स्कूलों और रोज़गार योजनाओं पर नहीं लगाया जा सकता था?

  • क्या सरकार ने पारदर्शिता से जनता को पूरे हिसाब-किताब की जानकारी दी है?


संभावित घोटाले के संकेत

कई सामाजिक संगठनों और पत्रकारों का कहना है कि इसमें गंभीर वित्तीय अनियमितताएँ हो सकती हैं।

  • क्या वाकई टेंडर प्रक्रिया (निविदा) पारदर्शी रही?

  • अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भी 112 जैसी योजनाएँ चली हैं, लेकिन वहाँ खर्च इतना अधिक क्यों नहीं हुआ?

  • क्या यह मामला महज़ सुरक्षा की आड़ में पैसा “कहीं और” पहुँचाने का तरीका है?


सरकार और पुलिस का पक्ष

सरकारी अधिकारियों और पुलिस विभाग का कहना है:

  • 112 योजना से जनता को तुरंत सहायता मिलेगी।

  • तकनीकी अपग्रेड और हाईटेक सिस्टम से अपराध पर लगाम लगेगी।

  • खर्च ज़्यादा ज़रूर है, लेकिन सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता।


विपक्ष और समाजसेवियों का आरोप

विपक्षी दलों और समाजसेवियों ने आरोप लगाया कि यह पूरा प्रोजेक्ट एक भ्रष्टाचार का उदाहरण है।

  • उनका कहना है कि गाड़ियों की लागत को कई गुना बढ़ाकर दिखाया गया

  • यह पैसा वास्तव में जनता की ज़रूरतों पर लगाया जाना चाहिए था।

  • कुछ लोगों ने RTI (सूचना का अधिकार) के तहत इस मामले की जानकारी माँगी है।


जनता की सुरक्षा बनाम भ्रष्टाचार का डर

यहाँ सबसे बड़ा सवाल यही है:

  • अगर योजना सही है, तो लोगों को तेज़ पुलिस मदद मिलेगी।

  • लेकिन अगर इसमें गड़बड़ी है, तो यह 1200 करोड़ का घोटाला बन सकता है, जिसका बोझ अंततः जनता पर ही पड़ेगा।


सवाल जिनके जवाब ज़रूरी हैं

  1. क्या सरकार बताएगी कि प्रति गाड़ी की असली लागत कितनी है?

  2. क्या गाड़ियों का रखरखाव और फ्यूल कॉस्ट जनता के टैक्स से ही होगा?

  3. क्या पूरे प्रोजेक्ट का स्वतंत्र ऑडिट करवाया जाएगा?


मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका

यह मुद्दा अब सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा में है।

  • ट्विटर और फेसबुक पर लोग सरकार से सवाल पूछ रहे हैं।

  • कई मीम्स वायरल हुए जिनमें इसे “1200 करोड़ का घोटाला” बताया गया।

  • पत्रकार और एक्टिविस्ट लगातार इस मामले में पारदर्शिता की माँग कर रहे हैं।


निष्कर्ष

112 योजना का उद्देश्य जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना था, लेकिन इसके साथ जुड़ा 1200 करोड़ का खर्च गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या यह वास्तव में जनता की सुरक्षा को मजबूत करेगा, या यह 1200 करोड़ का काला धब्बा बनकर रह जाएगा? जनता अब सरकार और पुलिस से स्पष्ट जवाब चाहती है।

Frequently Asked Questions

112 योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?

किसी भी आपात स्थिति में नागरिकों को त्वरित पुलिस सहायता देना।

1200 करोड़ का खर्च क्यों सवालों में है?

क्योंकि प्रति गाड़ी की अनुमानित लागत 1 करोड़ बैठ रही है, जबकि बाज़ार मूल्य इससे कहीं कम है।

1200 करोड़ का खर्च क्यों सवालों में है?

हाँ, यूपी और दिल्ली में भी 112/100 डायल योजना है, लेकिन वहाँ इतना अधिक खर्च नहीं हुआ।

जनता को इससे वास्तविक फायदा मिलेगा या नहीं?

फायदा तभी होगा जब गाड़ियाँ समय पर पहुँचें और सिस्टम पारदर्शी रहे।

इस मामले की जांच कौन करेगा?

विपक्ष और समाजसेवी स्वतंत्र ऑडिट की माँग कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल सरकार ही इसके जवाबदेह है।