कलिहनुवाणी : ऐसी पुस्तक जो यह सोचने मजबूर कर देगी कि आप हैं कौन?

इस पृथ्वी को हम कितना जानते हैं? कितना जानते हैं इस अनंत ब्रह्मांड को? मान्यताएं क्या होती हैं और क्या हम किसी मान्यता प्रणाली या किसी परंपरा को अपनी इच्छा से मानते हैं? यदि हां, तो इस इच्छा को जन्म देने वाला कारण क्या है, और यदि नहीं, तो वह कौन सी शक्ति है जो हमें इन मान्यताओं से बंधे रहने के लिए बाध्य करती है? स्वप्न क्या हैं? क्या ये वास्तविकता हैं या पूर्ण रूप से मिथ्या? 

कलिहनुवाणी

आप सोच रहे होंगे कि मैं क्या कह रहा हूं। इतिहास से अचानक धर्म, अध्यात्म और दर्शन पर क्यों आ गया? परंतु यह एक ऐसा विषय है जिसमें सोचने बहुत कुछ है।इसमें जानने की अपार संभावनाएं हैं, और इन्हीं संभावनाओं को प्रदर्शित करती है एक किताब जिसका नाम है कलिहनुवाणी। 

बड़ी रोचक किताब है यह। कुछ समय से इसे पढ़ रहा हूं। कुछ बातें समझ में आईं हैं, बहुत कुछ समझना बाकी है, और कुछ शायद न भी आएं, परंतु यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि पुस्तक तो रोचक है, और इसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।

इस पुस्तक का केंद्र क्या है आइए पहले ये जानते हैं।

मातंगों का रहस्य

माना जाता है कि पवनपुत्र हनुमान जी को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। कलियुग के अंत तक वह इस पृथ्वी में विद्यमान हैं। कहा जाता है कि कलियुग में ज्ञान का अभाव रहेगा। परंतु ज्ञान पूर्ण रूप से लुप्त न हो इसलिए बुद्धि एवं बल के देवता हनुमान जी ने एक ऐसे आदिवासी समूह का चुनाव किया था जिनके सदस्यों को आज भी वे ब्रह्मज्ञान देने आते हैं। इस आदिवासी समूह के लोगों को मातंग कहा जाता है और ये धारणा है कि हर 41 वर्ष के पश्चात हनुमान जी अपने इन प्रिय शिष्यों को ब्रह्मज्ञान प्रदान करने आते हैं। सेतु एशिया नामक एक संगठन का दावा है कि पिछली बार वे 2014 में मातंगों को ज्ञान प्रदान करने आए थे और अगली बार 2055 में आएंगे। यह आदिवासी समूह मुख्यधारा के समाज अर्थात हम लोगों से पूर्ण रूप से कटा हुआ है। हनुमान जी ने 2014 में यहां आकर जो कुछ भी रहस्य मातंगों को समझाए, वह इस किताब के माध्यम से मुख्यधारा के समाज में पहुंचे।

 लेकिन ये दुर्लभ ज्ञान कैसे ज्ञात हुआ, इसके लेखक कौन हैं और सबसे पहले किसने इन आदिवासियों को जाना, अब ये जानते हैं।

कलिहनुवाणी के लेखक कौन हैं?

यदि आप पुस्तक को देखेंगे तो उसपर लेखक के नाम की जगह केवल “शून्य” लिखा दिखेगा। परंतु इसका वास्तविक लेखक कौन हो सकता है, इसका अनुमान पुस्तक की  प्रस्तावना से लगाया जा सकता है। यह प्रस्तावना कनाडा देश के टोरंटो नगर में रहने वाले एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताती है जिसका जन्म हिंदू धर्म में नहीं हुआ है और न ही उसने कभी हनुमान जी का नाम तक सुना है। उसके पुत्र की मृत्यु होती है और जब वह उसकी अंत्येष्टि करके लौट रहा होता है तो उसका मस्तिष्क शून्य हो चुका होता है। उसमें रिक्तता आ जाती है और तभी उसकी कार के बगल से एक और कार गुजरती है जिसकी छत पर उसको दिखाई देती है एक बहुत विशाल उड़ते हुए वानर की आकृति। जैसे ही उसका मन पुनः सक्रिय होता है वह आकृति दिखाई देना बंद हो जाती है। उस गाड़ी में हनुमान जी के एक भक्त सवार रहते हैं। कुछ समय पश्चात वह व्यक्ति उन भक्त पुरुष को अपना गुरु मानकर हनुमान को समर्पित हो जाते हैं और उन्हें नाम मिलता है “हनुदास”।

हनुदास को इस आदिवासी समूह के बारे में पता चलता है जो श्री लंका के घने जंगलों में सप्त कन्या पर्वत श्रृंखलाओं में रहते हैं और वह इनके बारे में शोध करने लगता है। ईश्वरीय योजना के तहत वह इस शोध में सफल होता है और जो कुछ भी उसे पता लगता है वह सब ज्ञान कलिहनुवाणी किताब में प्रकाशित होता है।

प्रस्तावना के अनुसार मातंगों के मुखिया बाबा मातंग हनुमान जी के एक एक शब्द को एक पुस्तिका में अपनी गुप्त भाषा में लिखते जाते हैं। हनुदास इसी पुस्तिका को प्राप्त करके उसकी भाषा को समझने का प्रयास करता है और सफल होता है।

निष्कर्ष यह निकल सकता है कि या तो बाबा मातंग या हनुदास इस पुस्तक के लेखक हैं। परंतु इसमें दिया गया ज्ञान हनुमान जी के द्वारा मातंगों को दिया गया है।

क्या ये सब सच है अथवा कल्पना?

मातंगों के बारे में जो कुछ भी इस किताब में दिया गया है वह सच है या मिथ्या, ये तो पूर्ण रूप से नहीं कहा जा सकता परंतु इसके कुछ प्रमाण पुस्तक में ही दिए गए हैं।

पुस्तक में 1974 में श्रीलंका में हुए विमान हादसे का उल्लेख है। 1974 भी वही वर्ष था जिस वर्ष मातंग हनुमान जी से मिलने वाले थे।इस हादसे का उल्लेख इतिहास में भी है। यह बहुत बड़ा विमान हादसा था जो सप्त कन्या पर्वत श्रृंखलाओं के आसपास हुआ था।

बहुत सी वेबसाइट ऐसी हैं जो इस बात की पुष्टि करती हैं। हालांकि खुद किताब के डिस्क्लेमर में इसे वर्क ऑफ फिक्शन कहा गया है, लेकिन इसको प्रकाशित करने वाला संगठन सेतु एशिया यह दावा करता है कि यह सत्य है। अब यह सत्य है या केवल मिथ्या उसको यदि दरकिनार कर दिया जाए तो पुस्तक में बातें तो अच्छी हैं।

अब यदि यह सब सच है तो क्या हम मातंगों तक पहुंच सकते हैं? नहीं। क्योंकि यह मानव समाज से पूर्ण रूप से कटा रहने वाला समूह है और इस पुस्तक के अनुसार इस समूह पर हनुमान जी की कृपा है और कोई मुख्यधारा का व्यक्ति इन तक तब तक नहीं पहुंच सकता है जब तक स्वयं हनुमान जी की इच्छा न हो। और उन्हीं की इच्छा से हनुदास इन तक पहुंचे और यह पुस्तक प्रकाशित हो सकी। 

इस पुस्तक में क्या खास है?

यह पुस्तक कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है। इसे पढ़ने के लिए कोई प्रोटोकॉल की आवश्यकता नहीं है। ये ऐसी पुस्तक है जो आपके मस्तिष्क को यह सोचने पर विवश कर देगी कि आप कौन हैं? केवल देह या आत्मा। शरीर, आत्मा, सुर, असुर की अवधारणाओं को समझने का बहुत अच्छा मार्ग है यह पुस्तक। इसे पढ़ने के बाद आप सोचेंगे कि आपके एक दिन में शायद ऐसी बहुत सारी घटनाएं होतीं होंगी जो आपको लग तो बहुत साधारण रहीं हैं परंतु उनके पीछे की वास्तविकता जब आपको ज्ञात हो तो आप हैरान रह जाएं। इसे समझना थोड़ा कठिन होगा। इस किताब की धारणा है कि अभी जो दृश्य आप जी रहे हैं उसी के समानांतर में अनंत दृश्य आपको ही केंद्र में रखकर चल रहे हैं, जिसमें आप तो वहीं रहते हैं बस परिस्थितियां बदल जाती हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए आप किसी दृश्य में बाज़ार जा रहे हैं और रास्ते में चलते हुए आप याद करते हैं कि आप पैसे घर पर ही भूल आए हैं और वापस वे पैसे लेने चले जाते हैं। इसी के समानांतर एक दृश्य यह भी चल रहा होगा जिसमें आप पैसे भूले ही नहीं और बाजार से सामान लेकर वापस लौट रहे हैं। ये तो दो ही दृश्य हैं , ऐसे लाखों करोड़ों दृश्य साथ साथ चलते रहते हैं।

हम अक्सर किसी को खराब परिस्थिति में देखकर बोल देते हैं की ईश्वर उसकी मदद क्यों नहीं कर रहा। इस पुस्तक को पढ़ कर यह पता लगेगा कि ईश्वर द्वारा मदद प्राप्त करना भी उसी व्यक्ति की आत्मा पर निर्भर करता है। यह आवश्यक नहीं कि जो आत्मा जीवन के साथ आई थी वही आत्मा जीवन के अंत तक एक ही शरीर में रहेगी। आत्मा की कोई स्मृति नहीं होती, मन अथवा शरीर की स्मृति होती है। ऐसी बहुत सी बातें यह पुस्तक बताने का प्रयास करती है, बशर्ते आप इसे समझ सकें।

जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे तब शायद आपको ये लगे कि यह आम दर्शन की किताबों के जैसी ही हो, परंतु यह उनसे काफी अलग है। यह आपको शुरू में बोर कर सकती है परंतु धीरे धीरे यह आपको खुद से बांधने में सफल होती है।

यह पुस्तक सर्वप्रथम अंग्रेजी में The Immortal Talks नाम से प्रकाशित हुई थी और इसकी सफलता देखते हुए यह 2020 में हिंदी में प्रकाशित हुई।

यह पुस्तक स्वयं को मुख्यधारा से भी जोड़ती है, जहां के व्यक्तियों को हनुमान जी मातंगों को ज्ञान प्रदान करने का निमित्त चुनते हैं। जब आप यह पुस्तक पढ़ेंगे तो आपको पिंगल यंत्र नामक यंत्र के बारे में लिखा दिखाई देगा। यह यंत्र वास्तव में वहीं वस्तु है जिसे अपने हाथों में लेकर आप यह लेख पढ़ रहे हैं। जी आप सही समझे, आपका अपना मोबाइल। 

इससे आप यह समझ सकते हैं कि यह केवल आपको धर्म पुराण के बारे में नहीं बताती यह आधुनिक जीवन को निमित्त बनाकर अपनी बातें रखती है।

कुल मिलाकर पुस्तक जब आप पढ़ना शुरू करेंगे, आप कोशिश करेंगे कि इसे छोड़ दिया जाए, बोर कर रहा है। यदि यह सोचने के बाद भी आप इसे पढ़ना जारी रखते हो तो यह आपको बांधने में सफल होगी। नहीं लगेगा बोर, अच्छी लगेगी। इसे क्रय करने के एक वर्ष पश्चात पढ़ा है, इसलिए ये कह रहा हूं। 

पढ़िएगा जरूर, नई बातें पता चलेंगी, सोच विस्तार लेगी, आप अपनी बनाई धारणाओं से बाहर निकलेंगे, रोचकता बनी रहेगी, कुछ पुरानी यादों के माध्यम से आप इससे रिलेट भी कर पाएंगे। 

धन्यवाद

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